मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

DEVI

कुमांऊ के दूरस्थ क्षेत्र मैं बसा एक गाँव है बुदनी, गावं मैं कुल मिलकर २०-२२ घर है, यंहा पर सिर्फ एक ही सरकार चलती है; आस्था की सरकार, पिछले साल ही आयी पहाड़ी बाढ़ मैं बहुत से घर नष्ट हो गए।   घर से जो मर्द काम पर निकले वो वापिस ही नहीं आये।  लेकिन उनकी औरतो मैं अभी भी श्रद्धा बाकी है. ऐसा ही घर एक  है नलिनी का. उसके बाबा एक सप्ताह के लिए गए लेकिन दो महीने गुजरने के बाद भी अभी तक नहीं लौटे।  घर का सारा जरुरी राशन   चाचा के द्वारा ही आता है. माँ तो जैसे इस बोझ के निचे दबे जाती है, अभी १५ दिन पहेले की ही बात है, हमारी सारी बकरिया चाचा ने अपने फार्म रख ली , माँ कहती है कि सही हुआ, नही तो बकरी के चारे की भी मुस्किल हो जाती, सुबह शाम मुझे अपने चाचा के घर जा कर दूध निकलना होता है।  परसो तो चाचा ने हद ही कर दी, उन्होंने पास  आकर मेरा  हाथ को जोर से दबा दिया और कहा की मुझे उनसे दूध निकलना सीखना होगा। मैंने भी घर वापिस आकर माँ से कहा की मैं कल से चाचा के घर दूध दोहने नहीं जाउंगी।  माँ ने बस रोना पीटना शुरू कर दिया।  कहने लगी अगर तेरी जगंह कोई लड़का पैदा होता तो क्या वो भी अपनी माँ के साथ यही सलूक करता।  तेरा भाई तो अभी छोटा है, नहीं तो क्या हमे  ऐसे किसी और से अनाज की मदद लेनी पड़ती ? माँ का बोलना देर रात तक बंद नहीं हुआ।   पता नहीं कब मेरी आँख लगी सुबह देखा की माँ की बड़ बड़ एक दम ख़ामोशी मैं बदल गयी है, दूध का बर्तन हाथ मैं पकड़ा हुआ है  और फिर थोड़ी देर मैं मुझे देख कर बोली की रवि  नहीं संबलेगा तुझपे, जा बात मान दूध दुहने चली जा।   तेरी चाचा चाची आयेथे रात को बोले की  धुनि वाले  महाराज दुबरा आ रहे  है गावं मैं , आज रात धुनि लगा के पूरी  गाव को  आशीर्वाद देंगे जा जल्दी से काम निपटा कर आजा।  शाम के वक़्त माँ जल्दी जल्दी तयार हुई, पुराने बक्से मैं से एक नयी ओढ़नी ,पिछोड़ा  निकला। माँ को बहुती उम्मीद थी ,  एक हाथ मैं फूलो की  थाल, और दूसरे  मैं एक लाल रंग कि चुनरी लेकर माँ पंगडंडी पर तेज़ी से मंदिर  कि तरफ बढ़ती जा रही थी।... थोड़ी  ही देर  के  बाद मुझे ढोल  कि  आवाज  आने लगी, जैसे मधुमक्खी के पंखो   की आवाज  होती  है  न  कर्कश   कुछ -  कुछ  वैसी   ही आवाज।

गीता के कानो मैं वह आवाज धीरे धीरे तेज़ होती चली  गयी, और थोड़ी देर के बाद ही गीता उस भीड़ का हिस्सा थी जंहा पर बाकी के लोग भी धूनी वाले बाबा के आशीर्वाद के इंतज़ार मैं थे।  हमे उस भीड़ मैं बैठे हुए एक घंटे से जायदा का वक़त हो चूका  था।  माँ लगातार कह रही थी चाचा  उनके  प्रमुख सेवादार  है , और हमरा नंबर जल्दी  आएगा  लेकिन ऐसा कुछ नहीं  हुआ, लोग एक एक कर के धूनी बाबा के पास जा रहे थे, धूनी बाबा के बांये वाले  बगल मैं चाचा  बैठे हुए थे, चाचा  लगातार चिलम तयार कर रहे थे , और बाबा कि दाए तरफ एक औरत बैठी थी, माथे पर गाढ़ा  लाल सिंदूर  का लम्बा  तिलक, आँखों मैं गहरा दूर तक लगा सिंदूर।   गाव के लोग एक एक कर के उसके पास अपनी समस्या लेकर   जाते   बदले  मैं या  तो थपकी मिलती या फिर धूनी कि उड़ती धुल थपकी मिलते ही काम बन  जाता लेकिन धुल का मतलब कि धूनी बाबा की लम्बी  सेवा की तैयारी।
   
जब हमारा नंबर आया तो चाचा ने धूनी बाबा को इशारा किया और धूनी बाबा ने माँ कि जगंह मुझे थाल लेने के लिए कहा,  धूनी बाबा की डरवानी लाल आँखों के सामने मैं बेबस थी, माँ ने मुझे थाल पकड़ा कर आगे कर दिया। फिर मैं धिरे धीरे उस औरत  के सामने  बढ़ी , मैं उसके थपकी  के लिए तैयार  थी।   तभी चाचा ने जोर से कहा देखती  क्या है  मुर्ख  लड़की? ये  साक्षात्   देवी  है दंडवत प्रणाम  करो  इन्हे  जैसे ही मैं निचे झुकी तो  देवी ने मेरा हाथ  कस कर पकड़ लिया, और फिर धूनी की  राख का मुट्ठा भर कर मेरे चेरे पर फैक दिया।  और जोर जोर से सर हिलाने लगी, डर के मारे मेरे हाथ  पैर ढीले पड़ गए, ऐसा लगा की शरीर मैं जान ही नहीं है , तभी धूनी बाबा उठे और अपने जल से देवी के ऊपर छीटें मारे, और जोर से बोले बता देवी तू क्या चाहती  है , देवी का  सर हिलना  अभी बंद नहीं हुआ था।  सर हिलाते हुए ही उसने कहा की वो मेरे शरीर मैं आना  चाहती है। मेरी सेवा लेना चाहती है सात  दिन की मेरी सेवा लेकर वो मुझे जो चाहे वर देगीं।   फिर वो औरत बेहोश हो कर गिर गयी धूनी बाबा ने गाव के लोगो को मुझे प्रणाम करने को कहा.. थोड़ी  देर   के बाद मैंने देखा माँ समेत  सब लोग मेरी तरफ झुके कर मुझे प्रणाम कर रहे  थे।

     फिर  एक सप्ताह के बाद मुझे त्रिभुजाकार आकृति  के बीच मैं बिठा दिया गया।  और पिने के लिए एक नारियल का पानी दिया गिया।  जाने क्यों पर अचानक ही वह पानी पिने के बाद मेरी सारी बेचैनी दूर हो गयी।  मुझे लगा कि ये  धूनी बाबा का चमत्कार है , फिर  थोड़ी देर के बाद सब कुछ धुंदला होने लगा ऐसा लगा की जैसे कुछ छूट रहा हो।  तभी   कमेरे मैं चाचा अंदर आये। उन्होंने आकर मेरे गालो को सहलाना शुरू कर दिया।  मैं चाहकर भी विरोध नहीं कर पा रही थी।  पर गुस्से मैं मेरा पूरा शरीर थरथरा रहा था, ऐसे मैं मैंने पहेली बार माँ देवी से पार्थना की वो इस दैत्ये से  मेरी रक्षा करे।  उसके शारीर के बढ़ते दबाव को मैं अपने शरीर पर महसूस कर सकती थी। मेरा हर अंग इसका विरोध करने को जैसे तड़प  रहा था।  माँ भवानी का नाम लेकर मैंने, जोर से अपनी टांग को उसके पेट पर मारा . और नशे धुत चाचा थोड़ी  दूर जा  कर  गिरा, वो phir से उठा aur  भद्दी गलिया देते हुए मेरे पास दोबरा  आया , इस बार मैंने कमरे मैं पड़ी  हुई दरांती को उठा लिया।  वो नशे मैं मेरी तेज़ी से मेरी  तरफ आगे मैंने भी दरांती से uspar vaar kiya उसने अपने हाथो khud को बचा लिया लेकिन केले के छिलके  पर पैर  फिसलने के बाद सीधा  कमरे की खिड़की से बहार गली जा गिरा। थोड़ी देर मैं गाव के लोग और धूनी बाबा कमेरे आ गए। चाची जोर जोर से गला फाड़ कर चिलाने लगी , मुझसे रहा नहीं गया और उसके पास जा कर उसके बाल  पकड़  कर मैंने जोर से उसके गालो पे दो थपपड जड़ दिए।   थोड़ी देर के लिए जो शोर मचा था वो शांत हो गया।  मेरा शरीर अभी भी डर से थर्रा रहा था।   इसी बीच अपनी माँ को देख कर मेरे गला भर आया और माँ कह  कर मैं उससे लिपट गयी।  गाव वालो ने  मेरी माँ से  कहा कि तेरी बेटी ने हत्या कि है इसका फैसला अब धूनी बाबा ही करंगे.  धूनी बाबा ने सभी गाव वालो कहा  ये हत्या नहीं है पर बलि है, माँ  ने साक्षात् आकर गाव वालो पर प्रस्न हो कर बलि ली है अगर अब भी हम ने इस लड़की को कुछ भी किया तो पहाड़ पर और मुसीबत टूटेगी।    पूरी रात भर धूनी बाबा  ने मेरी माँ को और गाव वालो  को समझया की तेरी बेटी अब तेरी नही है वो देवी है और देवी का भक्त होने के नाते उसकी सेवा अब  वो ही करेगा।

अगले दिन  भरी  पंचयत मैं ये फैसला कर दिया गया , मेरा घर ही मुझसे छीन लिया गया।  माँ ने भी मुह  फेर लिया।  जैसे उस  कुछ पता  ही न हो।  पुरे गाव ने मुझे उस धूनी बाबा को देकर सारे गाव कि सुख सम्पति को सुरक्षित कर लिया, और मुझे देवी बना कर माँ को भी जिंदगी भर का आनाज और कपडा मिल गया।  

कुछ दिनों तक गाँव के लोगो का आदर सत्कार गरहन करने के बाद मैं धूनी बाबा से वापिस घर जाने की बात की, तो एक ही जवाब आया ऐसा क्या करने वाला था तेरा चाचा जो तूने उसका क़त्ल ही  दिया  इसकी  सजा जानती है न तू, तेरे घर वालो को गाँव से हुक्का पानी बंद कर देंगे ।

इसके बाद हमने बूंदी छोड़ दिया और आस पास के गावो से और छोटे शहरो से होते हुए वो  मुझे एक बैलगाड़ी मैं देवी बना कर घूमने लगा । बड़े बड़े लोग मेरे आगे झुकते चढ़ावा देते   और मेरा काम था लोग की पीठ पर जोर से थपका मरना।  धूनी बाबा की औरत मुझे बड़े चाव से तयार करती और देवी बनाकर बैलगाड़ी पर बिठा देती। मुझे पता नहीं की मेरे द्वारा दिए गए आशीर्वाद से किसी का भला हुआ की नहीं।  पर मैंने अपना भाग्य स्वीकार कर लिया था।  रात को हम कंही भी रुक जाते , कभी जंगल मैं , कभी नदी किनारे और कभी शमशान घाठ पर ही रात बितानी पड़ती।  
ऐसे ही एक रात को जब मैं  अपनी बैलगाड़ी के अंदर  ही सो रही थी तो मुझे धुनि बाबा कि औरत कि रोने और धूनी बाबा की चिलाने कि आवाज आयी।  थोड़ी देर के बाद बाबा मेरी पास आये... उसके अंदर आते ही शराब कि बदबू  पूरी गाडी मैं फैल गयी।  मैंने पिछसे हटने कि कोशिस कि लेकिन उसके हाथो से मैं बच नहीं पायी।
अगल दिन से धूनी बाबा कि औरत की आँखों मैं मेरी लिए  नफरत भरी थी, उसने मुझे  तैयार करना बंद कर दिया।  फल और चढ़वा अपने पास रखने लगी , एक दिन तो मुझे उससे झगड़ कर अपना खाना  लेना  पड़ा
ऐसे मैं एक दिन हम एक शमशान घाट मैं  रुके पास मैं ही जलती हुई चिता मैं से चिंगारिया फूट फूट  कर थोड़ी देर के लिए उड़ती और फिर हवा मैं  ही  विलुप्त  हो जाती। थोड़ी देर के बाद मैंने फिर से धूनी बाबा की चिलाने और उसकी औरत के रोने कि आवाज सुनी। मुझे नहीं नहीं और रोने  के अलावा और कुछ नहीं सुना , मेरा दिल जोर से धड़क रहा था।  फिर एक गाडी के आवाज ने थोड़ी देर के लिए उसके रोने की आवाज को दबा दिया। लेकिन अब उसका रोना और भी जोर से होने लगा था।  फिर थोड़ी देर के बाद सबने शराब पी उस गाडी मैं जो आया था उसने एक  बैग बड़े स्वामी को दिया पास मैं ही धुनि बाबा की औरत या फिर मुझे से पहेले की देवी निढाल पड़ी थी।  कुछ देर के बाद हमारी  बैलगाड़ी ने चलना शुरू कर दिया।  अब  मुझे एक बात तो समझ आगयी थी , धूनी बाबा अपने लिए किसी को भी मार सकता है , लेकिन न तो मैं इस जगह को छोड़ सकती थी न ही इसका विरोध। फिर से मेरा गाव गाव घूमना शुरू हो गया।  थोड़ी दिनों मैं मैंने पाया की मुझे मितली ज्यादा ही आती थी।  और ऐसा भी वक़त आया की मेरा चलना मुस्किल हो गया।  अब धूनी बाबा मुझे और ध्यान  से डख कर दुनिया के पास लेजाते थे।  थोड़े दिनों के बाद मैं एक गाव मैं हम कई दिनों के लिए रुके।  वंहा पर एक ७-८ साल का बच्चा हर रोज मेरे पास आता , मैं उसे आशीर्वाद और बदले मैं कुछ न कुछ मीठा  जरुर देती।  बच्चा अब हर रोज हमरे पास आता था।  एक दिन मैंने उससे पूछा  की उसका नाम क्या है लेकिन कोई जवाब नहीं आया।  लगता था कि वह बोल नहीं पता था। लेकिन मैंने उसका नाम रवि रख दिया  अगले  दिन मैंने रवि को धूनी बाबा के साथ खेलते पाया।  मुझे रवि कि चिंता होने लगी।

उसी दिन मैंने उससे कुछ प्रसाद दिया  औरउसको कहा की वो कभी वापिस ना आये। रात को ही हम गाव से रवाना हो गए मैं  जागती रही, रवि के बारे सोचते  सोचते  मुझे  कब नीद आयी पता नहीं चला ।   अगले दिन रवि को धूनी बाबा के कंधे पर बैठा पाया। उससे वहना देख कर मुझे गुस्सा आया और बैलगाड़ी से निकल कर मैं रवि को धूनी बाबा से अलग कर लिया और सड़क पर भागने लगी।  पर अपने अंदर के भार से जैदा देर दौड़ नही पायी।  धूनी बाबा ने फिर से रवि को मुझसे छीन लिया और मेरे बाल  खींच जमीं पर गिरा दिया। अपनी मर्जी से आया है। पूछ ले इससे , बोल कर धूनी बाबा वह से चला गया।    

थोड़ी देर के बाद मैं और रवि दोनों बैल गाडी मैं बैठे हुए थे।  फिर रवि बोला तू चिंता मत कर मैं तुज़े यहाँ से लेजाने आया हु।  मुहे ये जान कर बहुत ख़ुशी हुई की वो बोल पता है।  मैंने उससे पूछस क्यों रे तुज़े अपने घर कि याद नहीं आती है  उसने ना मैं गर्दन  हिला  दी। मुझे पता था कि वो मेरे लिए ऐसा बोल रहा है। अमावस कि रात से पहेले हमारा डेरा नदी किनारे वाले शमशान घाट मैं लगा , अब रवि ने शोर मचना शुर कर दिया।  एक तो जलती हुई चिताए ऊपर से अघोरियों का शोर।  मैं उसे काफी समझती रही कहती  रही कि मैं उसको भगा  दूंगी और वो वापिस अपने गाव चले जाए।  उधर धूनी बाबा ने सबको शराब देने कि ड्यूटी मेरी लगायी थी।   थोड़ी देर के बाद फिर से चमचमाती हुई एक कार वहाँ से पर आयी , एक सूट बूट पहने व्यक्ति वंहा पर आया, उसकी शकल मैं भूल नहीं skati थी ye वो ही था जिस  दिन धूनी  बाबा ने अपनी औरत की बलि दी  थी । उस आदमी  पूछा 'कब होगा मेरा काम?' तो धूनी बाबा के महाराज ने बोला की पिछले बार बांज कि बलि दी थी इस बार बच्चे का इंतज़ाम करना है।  तो धूनी बाबा ने कहा कि बच्चे का इंतज़ाम हो चूका है वो बैलगाड़ी मैं।  ये सुन कर मेरे पेट मैं जोर का दर्द उठ गया।  मैं उसी समय  जमीं पर घुटने के बल ही बैठ गयी ऐसा लगा कि मेरे पैरो कि जान ही निकल गयी  हो  ।  एक बार फिर से मैं उस स्थिति मैं थी। धूनी बाबा ने रवि को बैलगाड़ी से उठा लिया रवि जोर से चिलाता रहा।  मेरा वादा जो कि मैंने रवि से किया था मेरे दिमाग मैं गुज रहा था। अघोरी ने थोड़ी देर के बाद कहा की जो इस से प्यार  करता  है वो ही इसकी बलि दे तो ही ये बलि फैलगी  . इस पर मुझे चुना गया ,   रवि को फूलो  कि माला पहनवाई गयी  थी उससे  एक लाश के ऊपर उससे बिठा दिया गया था।  हम सब लोग उस लाश के चारो तरफ बैठ कर शराब पी रहे थे थोड़ी देर तक मैं उन सब के साथ शराब पी कुछ देर पिने के बाद मुझे लगा की मैं कई सारी बोतल पी सकती हु।  जलता हुआ हवन, उस मैं आती साम्रगी   खुसबू  सब के दिमाग पर असर कर रही थी।  फिर रवि पर मेरी नज़र गयी वो प्रसाद मैं मिलायी गयी  दवाई के असर से आधा मदहोश था लेकिन फिर भी माँ माँ कह कर मंद मंद बोल रहा था। मझे लगा अगर मैं ही खुद को मारडालू तो रवि बच जाएगा लेकिन फिर भी इस बार भागने से काम नहीं चलेगा। समय समय पर मेरे पेट का जिव भी अपनी लात मार कर जैसे मेरे विचारो का समर्थन कर रहा था।

 फिर मेरे हाथो मैं एक तलवार पकड़ा दी गयी।  मैं कापते हुई आगे बढ़ी और बच्चे कि गर्दन पर तलवार को छुआ अघोरी ने हवन कि आग कि तरफ इशारा किया।   और फिर मैंने वह तलवार आग मैं डाली अघोरी ने फूल, नारियल का पानी तलवार पर गिराने  के लिए आगे बढ़ाया। अघोरी नाथ का सर बिलकुल मेरे तलवार के निचे था।  ना जाने कैसे पर मेरे हाट ऊपर उठे और उसकी गर्दन कि तरफ बढे।   पर इस पहेले की तलवार उसका सर काट पाती वो अघोरी पीछे हट गया।  फिर भी उसकी गर्दन पर तलवार का कुछ हिस्सा लगा जो कि उससे पस्त करने के लिए काफी था।

फिर  रवि कि बांह पकड़ कर उसको गोदी उठा कर भाग पड़ी। धूनी बाबा भागते भागते  मेरे पैर को पकड़ कर मुझे गिरा दिया।  लेकिन मैं एक सामने पड़ी एक ईंट मेरे हाट मैं आगयी और उस ईंट को मैंने उसके सर पर मार दिया उसकी पकड़ थोड़ी कम हुई तो मैं दुबरा से भागने लगी , अघोरी नाथ के दूसरे साथी अभी मेरे पीछे पड़े थे।  मैं बेतहाशा दौड़ी जा रही थी।  धीरे धीरे उन लोगो का शोर कम होने लगे।  और उस शोर कि जगह मुझे गंगा के घाठ से आती हुई।  घंटियों और शंखो की आवाज सुनाई  देने लगी।  और गंगा नदी मेरे चारो तरफ घूमने लगी , ऐसा लगा जैसे मेरा सारा शरीर  हल्का हो गया हो।  रवि कि मंद मंद माँ माँ की आवज अभी मेरे कानो मैं गूंज रही थी। मैं खुद को गंगा के घाट पर पड़ा हुआ देख पा रही थी , खून से लतपथ पर दो नयी जंदगी के साथ मेरा शरीर  वंही पड़ा हुआ था।  आज मुझे लगा की मैं सचमुच की देवी बन गयी।  अब मैं फिर से शांत होने लगी मेरी धड़कन और मंद और मंद होती जा रही थी  धीर धीरे उजाला बढ़ता गया और फिर असीम प्रकाश मैं समां गया  |